Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-434



उद्धव ने माना कि वे ज्ञानी है सो उन्हें व्रज भेजा जा रहा है।
वे ज्ञानी तो थे  पर साथ-साथ अभिमानी भी थे।
वे कहते है -महाराज,वहाँ जाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है किन्तु गाँव के अनपढ़  गँवार लोग मेरे वेदान्त का ज्ञान समझ कैसे पायेंगे? मेरे वेदान्त की चर्चा वे अनपढ़ गोपियाँ कैसे समझेगी?
मेरे तत्व ज्ञान का उपदेश बड़ा गहन है सो वहाँ जाना निरर्थक ही है।
ये शब्द उद्धवजी के नहीं उनके ज्ञान के अभिमान के है।

श्रीकृष्ण गोपियों की बुराई सह नहीं सके। उन्होंने उद्धव से कहा -उद्धव,मेरी गोपियाँ अनपढ़ नहीं,ज्ञान से परे है।
वे पढ़ी-लिखी अधिक नहीं है किन्तु शुद्ध प्रेम की ज्ञाता है। इसी कारण से तो वे मुझे प्राप्त कर सकी है।
गोपियों का मन निरंतर मुझी से लगा हुआ है। उनका प्राण और जीवन मै ही हूँ।
मेरे लिए उन्होंने अपने पति-संतान,रिश्तेदारों का त्याग किया है। वे मुझे अपनी आत्मा मानती है।

उद्धव,कई गोपियोको ज्ञान की जरुरत है,और तुम्हे प्रेम की।
उद्धव,तुम्हे गोकुल जाना ही पड़ेगा। तेरे बिना यह कार्य नहीं हो सकता।
उद्धव के ज्ञान के अभिमान को दूर करने की यह लीला है।
भगवान् जानते थे कि अभिमानी उद्धव गोपियो को वंदन नहीं करेंगे। वंदन किये बिना कल्याण कैसे होगा?
सो उन्होंने आदेश दिया कि गोपियों को वंदन करना।

उद्धवजी की इच्छा तो नहीं  थी फिर भी भगवान के आग्रह के कारण व्रज जाने को तैयार हुए।
आपका आदेश है तो तो मै जरूर जाऊँगा -नंदबाबा और यशोदा माँ को समझाऊँगा,और वृजवासियों को बोध दूँगा।
प्रभु ने कहा-उद्धव मेरे ग्वाल-मित्रो को कहना कि -तुम्हारा कन्हैया तुम्हे याद करता है।
मेरी माँ से कहना कि- मेरे विरह में रोए नहीं।  प्रभुने इस प्रकार पूरी रात उद्धव को समझाया।

प्रातःकाल में उद्धव गोकुल जाने के लिए तैयार होकर श्रीकृष्ण के पास आये है।
श्रीकृष्ण ने अपना पीताम्बर और वैजयन्तीमाला प्रसाद के रूप में देते हुए कहा कि- -
उद्धव,तुम मेरे इन प्रसाद को धारण करके ही गोपियों से मिलने जाना।
मेरी गोपियाँ न तो किसी पर पुरुष को देखती है,और न तो बोलती है।
जब  तुम्हे इस पीताम्बर में देखेंगी तो उन्हें लगेगा तुम मेरे हो। उन्हें विश्वास होगा कि-
यह तो अपने श्यामसुन्दरका अंतरंग सखा  है। ऐसा विश्वास हो जाने पर ही वे तुमसे बात करेंगी।

उद्धव,तुम  भाग्यशाली हो- कि व्रज भूमि में जा रहे हो। व्रज- प्रेम भूमि है जो सभीका कल्याण करती है।
तुम्हारे कल्याणके हेतु ही मै तुम्हे वहाँ भेज रहा हूँ।

उद्धवजी का रथ चलने लगा तो श्रीकृष्ण ने कहा -मेरे माता-पिता को प्रणाम कहना और उन्हें आश्वासन देना कि उनका कन्हैया वहाँ अवश्य आएगा। इतना कहते-कहते श्रीकृष्ण की आँखों में आंसु आ गए।

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