Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-435


उद्धवजी को समझ नहीं आ रहा था कि  व्रज को याद करते ही प्रभुकी आँखे क्यों बह निकलती है।
जीव जब अपना जीवत्व छोड़कर ईश्वरके साथ प्रेमसे तन्मय हो जाता है,तब ईश्वर अपना ऐश्वर्य भूल जाते है।

श्रीकृष्ण मथुरा के राजा थे पर आज अपना ऐश्वर्य भूल गए है। प्रेम में पागल बने रथ के पीछे दौड़ रहे है।
तब उद्धवजी बोले- आप राजा है,आप ईश्वर है। आपका इस प्रकार रथ के पीछे दौड़ना शोभास्पद नहीं है।
आप चिंता न करे। मै सबको भली-भाँति उपदेश दूँगा।

अब प्रभु रुक गए और सोचते है -मेरा उद्धव भाग्यशाली है,जो प्रेमभूमि में जा रहा है। वे रथ को देखते ही रहे।
उद्धव अभी भी सोच रहे है कि व्रज में ऐसा क्या है? उद्धव प्रेमतत्व को बराबर नहीं जानते।

इस तरफ जब से कन्हैया ने गोकुल छोड़ा है,वन की कुंजे विरान सी हो गई है।
यमुनाका जल गोपियों के आँसुओकी धारा सा लग रहा है। गायोंने घास खाना छोड़ दिया है-
और मथुरा की दिशा निहारती रहती है। श्याम-विरह में हर कोई व्यथित है,व्याकुल है।

जब से कन्हैया मथुरा गया है,नन्द-यशोदा ने अन्न का एक दाना भी मुँह में नहीं रखा है।
जब तक वह वापस नहीं लौटेगा,हम नहीं खायेंगे। उन्हें -न रात को नींद आती है और न दिन को चैन।

यशोदाजी सोचती रहती थी कि कन्हैया जब लौटेगा तो मै उसे गले लगा लूंगी और गोद में बिठाकर भोजन कराऊँगी। उसे खिलाकर ही मै खाऊँगी। घर की हर चीज़ कन्हैया की याद दिलाती थी।
नन्द-यशोदा इस प्रकार लालाकी याद में डूबे रहते,आँसू बहाते रहते और परस्पर आश्वासन देते थे।

यशोदाजी आँगन में बैठे हुए नन्दको उलाहना दे रही है। आप ही के कारण लाला ने व्रज छोड़ा है।
आप उसे गायों को चराने के लिए भेजते थे। वह मुझे कहता था कि- उसे अन्य गोपबालक नचाते और दौड़ाते है। व्रजवासी उसे ठंडी रोटी खिलाते थे। सो वह परेशान होकर रूठ  गया और गोकुल छोड़कर चला गया।
वह गायोंके पीछे दौड़-दौड़कर थक गया सो चला गया।

व्रजसे जाते समय उसने मुझे वापस आने का वचन दिया था। मेरे आँसू वह देख नहीं पाता था।
जब भी मै रोती वह बड़े प्यार से मुझे मनाने लगता था। आज वह ऐसा निष्ठुर क्यों हो गया है?
मथुरा के लोगों ने कुछ जादू-टोना कर दिया होगा।
मैंने सुना है कि मेरा लाला मथुरा का राजा बन गया है। मुझे यह सुनकर खूब आनंद हुआ है।
पर वह यहाँ क्यों नहीं आता? लाला को इस प्रकार याद करके यशोदाजी रोने लगी।

तब नंदजी कहने लगे कि-मैंने कब गायों को चराने के लिए उन्हें भेजा था?

वही मुझे कहता था कि-गायों की सेवा के लिए ही उसका जन्म हुआ है। उसे गायों के बिना चैन नहीं आता था । उसके विरह में गायो ने भी खाना-पीना छोड़ दिया है। वे दुबली हो गई है। गंगी गाय तो घर पर भी नहीं आती। भूखी-प्यासी वृंदावन में घूमती रहती है। मै दुःख के मारे गौशाला में पाँव तक नहीं रख सकता हूँ।

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