इसलिए रूठ गया है और वापस नहीं आता है।
इसी प्रकार नन्द यशोदा सारा समय कन्हैया की याद में व्याकुल होकर आँसू बहाकर बिताते है।
एक दिन दोनों आंगन में बैठकर कृष्ण की बाललीलाओं की याद में खोये हुए थे कि-
एक कौआ आकर काँव -काँव करने लगा।
यशोदाजी अब कौए से कहती है-कि-क्या मेरा लाला आज आनेवाला है सो तू काँव -काँव कर रहा है?
जो आज मेरा कन्हैया घर आएगा तो मै तेरी चोंच को सोने से मढ़वाउंगी। तुझे मिष्टान खिलाऊँगी। कन्हैया के आगमनके समाचार देनेवालेकी मै जन्मो-जन्म सेवा करुँगी। कौआ- मुझे बता,मेरा लाला कब आ रहा है ?
इधर उद्धवजी के रथ ने मथुरा की सीमा पार करके व्रजभूमि में प्रवेश किया।
व्रजभूमि प्रेमभूमि है। यहाँ के पशु,पक्षी, वृक्ष सभी दिव्य है। वे सभी राधाकृष्णका कीर्तन करते है।
वृंदावनकी महिमा का वर्णन कौन कर सकता है।
कृष्ण के जाने के बाद मथुरा के ग्वालबाल भी रोज लाला के आने की प्रतीक्षा करते रहते थे।
लाला ने लौटने का वादा किया था इसलिए रोज राह देखते थे।
जब शाम तक लाला नहीं आता तो सब रोते हुए अपने घर लौट जाते थे। उनका यह रोज का क्रम था।
रोज़ के क्रम अनुसार आज भी सभी ग्वाल मित्र रास्ते पर बैठे हुए लाला की प्रतीक्षा कर रहे थे कि-
दूर से एक रथ आता हुआ दिखाई दिया। बालकों ने सोचा कि जरूर लाला ही आया होगा।
वे दौड़ते हुए रथ के पास पहुँचे। रथ में से किसी को उतरते हुए नहीं देखा तो एक दूसरे से कहने लगे कि-
यह तो कन्हैया नहीं है। दूसरा कोई है। अगर कन्हैया होता तो कूदकर बहार आता और हमे गले लगाता।
उद्धवजी ने बालकों को देखा पर रथ में ही बैठे रहे और बच्चों से कहने लगे कि-
मै श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर आया हूँ। श्रीकृष्ण आनेवाले है।
सभी बालकों ने कहा -उद्धवजी,हम कन्हैयाको सुखी करने के लिए उसकी सेवा करते थे। हमने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि वह निष्ठुर हो जाएगा। कन्हैया के बिना यह सब सूना -सूना लगता है।
उद्धव,कन्हैया को कहना कि गोवर्धननाथ तुझे याद करते है। वह इधर कब आयेगा?
हमे एक सन्देश भेजना है पर आप पहले नंदबाबा के घर जाओ।
वहाँ यशोदाजी और नंदबाबा दोनों उसकी प्रतीक्षा कर रहे है। हम वही आते है।
उद्धवजी का रथ यशोदाजी के आँगन के आगे आकर रुका।
नंदजी और यशोदाजी उस समय कृष्ण-लीला के स्मरण में इतने तन्मय थे कि रथ को दूर से देखते ही सोचा कि-जरूर उनका कन्हैया ही आया है। दोनों की जान में जान आ गयी।
दोनों रथ की ओर दौड़े और पुकारने लगे-कन्हैया आया-लाला आया।
और-जब रथ के पास पहुंचे और कन्हैया को नहीं पाया तो नंदजी मूर्छित हो गए।