Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-439



नन्द-यशोदा का कृष्णप्रेम देखकर उद्धवजी का आधा अभिमान उतर गया है।
कृष्ण की बाते करते-करते रात कहाँ बीत गई पता ही न चला।
सुबह होते ही उद्धवजी  यशोदाजीसे आज्ञा लेकर यमुना स्नान करने गए। उन्हें,आज  गोपियोंको भी सन्देश देना था। तब,ब्रह्ममुहूर्त में गोपियाँ स्नानादि से निवृत होकर कृष्णकीर्तन करती हुई दहीमंथन करने लगी थी,
श्रीकृष्ण की यादमें उनकी आँखे भीग जाती थी।

उद्धवने जब -गोपियों का कृष्णकीर्तन सुना तो उन्होंने सोचा कि -
जिनके कंठ इतने मधुर है तो वे कैसी अद्धभुत-स्वरूपा होगी। उन्होंने अब तक किसी गोपी के दर्शन नहीं किये थे। ब्रह्ममुहूर्त में कृष्णकीर्तन करनेवाले व्रजवासियोंको धन्य है। कृष्णके स्मरण मात्रसे इनके ह्रदय द्रवित होते है।
उद्धव का ज्ञानगर्व अब धीरे-धीरे मिट रहा था। उनका ज्ञान भक्तिरहित था सो कृष्ण ने उन्हें व्रज भेजा था।
उद्धवजी नन्द-यशोदा सी प्रेममूर्ति को देखकर आनन्दित हो गए थे ।

दधिमंथनके बाद नन्दजी के महल की ओर  देखकर प्रणाम करने का गोपियों का नियम था।
आज जब वे प्रणाम करने आयी तो वहाँ रथ देखा। रथ को देखा तो उनको अक्रूरप्रसंग याद आया।
"लगता है कि हमारे कन्हैया को ले जानेवाला अक्रूर फिर आया है। वह यहाँ क्यों आया होगा?"

विरहव्याकुलता गोपी कृष्ण का नाम रटती जा रही थी तब दूसरी गोपी ने कहा- अरी सखी,कृष्ण स्वार्थी और कपटी था,राजा बनते ही हम सबको भूल गया। अब तो हमे मन लगाकर घरके काम करने है।

गोपी - मै कृष्ण को ज्यो-ज्यो भूलने का प्रयत्न करती हूँ वह उतना ही याद आता है। कल मै कुएँ में जल भरने गई तो बाँसुरी का सुर सुनाई दिया। मैंने इधर-उधर देखा तो लाला को वृक्ष की डाली पर बाँसुरी बजाता हुआ पाया।
मै लाला के दर्शन में इतनी बाँवरी हो गई कि घड़े को रस्सी से बाँधने के बदले मैंने अपने बच्चे को बाँधकर कुए में उतारने जा रही थी कि लाला ने देखा और वह कूदकर नीचे आया और मुझे रोककर कहा -
अरी बावरी,यह तू क्या कर रही है? फिर तो कन्हैया मुझे घर तक छोड़ गया।

एक और गोपी बोली - लोग चाहे कुछ भी कहे,किन्तु मुझे तो कन्हैया यही दिखाई देता है।
कल सायंकाल में यमुनाजी में  जल भरने गई  तब मुझे डर लग रहा था।  
मुझे चिंता हो रही थी घड़ा सिर पर कौन चढ़ायेगा? मै कृष्ण-कृष्ण बोल रही थी कि-
कन्हैया वहाँ आया और मेरे  सिर  पर घड़ा रख दिया। उसने मुझ कहा -मै तो हमेशा  तेरे साथ ही हूँ।

बड़े-बड़े साधु और योगीजन समाधि लगाकर संसार को भूलने का प्रयत्न करते है  फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिलती। उनकी वृत्ति प्रभुमय नहीं हो पाती। पर इधर तो गोपियाँ प्रयत्न करने पर भी संसार को याद नहीं रख सकती। एक पल भी कन्हैया को भुला नहीं पाती। प्रभु को भूलने के प्रयत्न में निष्फल रहती है।

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