Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-440



गोपिया इस प्रकार कृष्ण की बाते कर रही थी कि उद्धवजी स्नानादि से निवृत होकर,भगवान् द्वारा दिया हुआ पीताम्बर पहन कर आये है। गोपियोंने उन्हें प्रणाम किया तो उद्धवजी ने अपना परिचय देते हुआ कहा -
मै तुम्हारे मथुरावासी श्रीकृष्ण का अंतरंग सखा  उद्धव हूँ और तुम्हारे लिए सन्देश लेकर आया हूँ।
वह मथुरा में है पर तुम्हे नहीं भूले।

गोपी बोली -उद्धव,मेरे कृष्ण तो मेरे पास ही है,मेरे ह्रदय में है,तू कौन से कृष्ण का सन्देश लेकर आया है?
वे तो सर्वत्र है। तुम्हे तो मथुरा में कृष्ण दिखाई देते है पर हमें तो यहाँ कण-कण में उनके दर्शन होते है।
वहाँ देखो - कदम्ब के वृक्ष पर बैठा हुआ कन्हैया बाँसुरी बजा रहा है। क्या तुम्हे दिखाई नहीं देता,सुनाई नहीं देता?
उध्दवजी! यदि तुम्हे श्रीकृष्णका साक्षात्कार हुआ होता तो -
तुम उन्हें वहाँ छोड़कर नहीं आते अथवा तुम्हे यहाँ भी श्रीकृष्ण के दर्शन हुए होते।

उद्धवजी ने गोपियों को व्यापक निर्गुण ब्रह्म का उपदेश देने का विचार किया।
वे कहने लगे -निर्गुण ब्रह्म की उपासना करो।

गोपियाँ -उद्धवजी,जो आनंद प्रभु ने दिया है वह आनंद तुम्हारा कोरा ज्ञान नहीं दे सकता।
हम श्रीकृष्ण के जाप के सिवाय और कुछ भी करना नहीं जानते। हम तो गाँव की अनपढ़ गोपियाँ है।
अपना सगुण -निर्गुण ब्रह्म का विवेक आप ही रखिये।
हम तो कृष्ण-प्रेम में ही तन्मय रहती है सो वह हमे वह,हर समय-हर जगह -प्रत्यक्ष दर्शन देता है।

उद्धवजी-तुम्हारे उस निर्गुण ब्रह्मकी आराधनाके हेतु-जो-मन,चित्तकी जरुरत है-वह हम कहाँ से लाये?
हमारा मन- चित्त तो कान्हाने चुरा लिया है।
उस नन्द-नंदन के सिवाय अपना कोई अन्य ईश्वर नहीं है। वही हमारा सर्वस्व  (ब्रह्म) है।

उद्धवजी अब सोचने लगे -इन गोपियों को तो सर्वस्व में श्रीकृष्ण के दर्शन होते है।
मै सर्व-व्यापक ब्रह्म का रटन-चिंतन करता हु ,फिर भी मुझे वह,सर्व-व्यापक ब्रह्मका अनुभव नहीं हुआ है ।
गोपियोंको व्यापक ब्रह्म का अनुभव है। मेरा शुष्क ज्ञान निष्फल ही रहा।
मै बुद्धि लडाता रहा,वेदांतके सिद्धांतोमें उलझता रहा किन्तु -सर्व-व्यापक ब्रह्म का अनुभव नहीं कर पाया।

गोपियाँ ने कहा -उद्धव तू आया वह ठीक किया,चल तुझे राधाजी के दर्शन कराने ले चले।
सखियो की मंडली में विराजमान श्रीराधिकाजी की शोभा अवर्णनिय है।
नौ साल की निर्दोष वय,सादगी भरा श्रृंगार,मुख पर दिव्य तेज की आभा,सात्विकता और प्रेम की मूर्ति,
जगतकी आनंददाता,श्रीकृष्ण की आनंददायिनी -श्रीराधाजी को उद्धवजी ने साष्टांग प्रणाम किया।

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