स्कन्ध-१०-दशम स्कंध (उत्तरार्द्ध)
दशम स्कन्ध के पूर्वार्ध में उद्धवागमन की कथा के साथ गोपी-प्रेम की कथा पूर्ण हुई।
गोपियाँ प्रेम- लक्षणा भक्ति की आचार्या है।
संसार व्यवहार निभाते हुए भी -किस प्रकार प्रभु भक्ति की जा सके? वह उन्होंने बताया है।
भागवत में हर चरित्रके अंतमें उसका रहस्य भी निर्दिष्ट है।
कंस और कंस की रानियाँ अस्ति और प्राप्ति की बातें हमने देखी।
नीति-अनीति से,किसी भी प्रकार के हथकण्डे अपनाकर धन कमाने वाला व्यक्ति कंस है।
जब से लोगों ने धन को ही सभी सुखों का आधार माना है और बैंक बैलेंस की चिंता में खोये से रहने लगे है,
तभी से पाप बढ़ता ही जा रहा है,कंस बढ़ते ही जा रहे है। पैसा सुख दे सकता है,शान्ति नहीं दे सकता।
दशम स्कन्ध के उत्तरार्ध में पचासवें अध्याय में जरासंघके आक्रमण की कथा है।
जीवन के उत्तरार्ध में पचासवें साल से मनुष्य पर जरासंघ -यानि कि -वृद्धावस्था घेरा डालती है।
उत्तरावस्था में जरासंघ -वृद्धावस्था के साथ युद्ध शुरु होता है।
आँखोंकी,कानोंकी,हाथ-पाँवकी शक्ति क्षीण होती जाती है। जरासंघके आने पर मथुराका गढ़ टूटने लगता है।
श्रीकृष्ण ने जरासंघ को सत्रह बार पराजित किया तो -वह अठारहवीं बार कालयवन को साथ लेकर आया।
उसने काल को पहले भेजा।
जब जरासंघ-वृद्धावस्था अपने साथ कालयवन-काल को लाता है तो उससे बचना आसान नहीं है।
जरासंघ और कालयवन एक साथ जब आते है तो श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़कर द्वारिका जाना पड़ा।
द्वारिका अर्थात ब्रह्म विद्या। अर्थात श्रीकृष्ण ने ब्रह्म विद्याका आश्रय लिया।
जब वृद्धावस्था अपने साथ काल को भी ले आये तब द्वारिका-ब्रह्म विद्या का आश्रय लो।
ब्रह्म विद्या के द्वार काल और जरासंघ के लिए खुल नहीं सकते।
ब्रह्मनिष्ठ को काम भोग,काल या वृद्धावस्था सता नहीं सकते।
वृद्धावस्था में बूढा,सत्रह बार बीमार होकर बच जाता है किन्तु अठारहवीं बार काल उसे नहीं छोड़ता।
अपने पति कंस की मृत्यु हो गई तो अस्ति और प्राप्ति अपने पिता जरासंघ के घर आ गई।
जरासंघ ने कंस हत्या की सारी बातें जानी तो उसने मथुरा पर आक्रमण किया।
उसके सत्रह आक्रमण श्रीकृष्ण और बलराम ने मार हटाये।
जब अठारहवीं बार लड़ने के लिए आया और अपने साथ कालयवन को भी ले आया -
तो कृष्ण ने मथुरा का त्याग निश्चय किया।
उन्होंने अब आनर्त देश (वर्तमान ओखा प्रदेश) में समुद्र किनारे रहने का निश्चय किया।