एक दिन कुम्हार कुछ  उठकर गाँव के बाहर मिट्टी लेने चला गया और बनिया मुँह देख न पाया। 
बनिया अपना नियम निभाने के लिए कुम्हारको ढूँढने निकला। 
अब भाग्य की बात तो देखो कि उस दिन कुम्हार मिट्टी खोद रहा था तो -
उसे सोने से भरा हुआ एक घड़ा उसके हाथ लग गया। 
वह उस घड़े को निकाल ही रहा था कि उसी  उसी समय बनिया आ पहुँचा। 
बनिये ने कुम्हार का मुँह देखकर कहा-चलो मैंने देख लिया। 
उधर  कुम्हारने समझा कि बनिये ने सोने से भरा घड़ा देख लिया है। यदि वह राजा से कह देगा तो-
सब जप्त हो जायेगा। सो बनिये से कहा,तूने देखा तो है लेकिन किसी से मत कहना। 
मै तुम्हे आधा भाग देता हूँ। बनिये को -आधा सोना मिल गया। 
अब बनिया सोचने लगा कि-मैंने इस कुम्हार के मुख दर्शनका व्रत लिया तो लक्ष्मीजी का आगमन हुआ। 
यदि मैंने स्वयं प्रभु के दर्शन का व्रत लिया होता तो कितना अच्छा होता। 
ऐसे क्षुल्लक संकल्पसे ऐसा लाभ हुआ तो शुभ संकल्प लिया होता तो कितना अच्छा होता। 
दो संकल्प तो सभी को करने चाहिए। एक,पापकर्मो से बचने का और दूसरा सत्कर्मो में ही लगे रहने का। 
कोई भी नियम लेने से जरासंघ (वृद्धावस्था)और कालयवन (काल-मृत्यु) के त्रास से बच पाओगे। 
काल-यवन को ब्रह्माजीका वरदान था कि- यदुकुल में जन्मे हुए कोई बहु उसे मार नहीं सकेंगे। 
ब्रह्माजी के इस वरदान को रखने के लिए श्रीकृष्ण उसे स्वयं नहीं मारते। 
इसलिए श्रीकृष्णने हार स्वीकार की- और वे रण छोड़कर भागने लगे,इसलिए उनका नाम पड़ा  “रणछोड़”
भागते हुए वे पर्यषण पर्वत की उस गुफा में पहुँचे जहाँ राजा मुचकुन्द तपश्चर्या करते थे- 
जब श्रीकृष्ण ने गुफा में प्रवेश किया तब  मुचकुन्द निद्रा में थे।  
श्रीकृष्ण ने उनका पीताम्बर मुचकुन्द के उप्पर डाल दिया और वे छिप गए। 
काल-यवन श्रीकृष्ण का पीछा करते हुए गुफा में आये समझे  कि श्रीकृष्ण सोये हुए है और उनको लात मारी। 
मुचकुन्द राजा ने देवों को युद्ध में खूब मदद की थी इसलिए वे थक गए थे और आराम करना चाहते थे। 
तब उन्होंने देवों से कहा था कि- -मुझे आराम करना है,मेरी निद्रा में भंग मत करना। 
तब देवों ने वरदान दिया था कि-जो तुम्हारी निद्रा में भंग करेगा,उसपर तुम्हारी नज़र पड़ेगी,
तो वह जलकर राख हो जायेगा। 
यहॉ,काल-यवनके पॉवके प्रहार से-मुचकुंद ने आँखे खोली और-उनकी दृष्टि कालयवन पर पड़ते ही वह  जलकर भस्म हो गया। मुचुकुन्द ने जब जाना कि श्रीकृष्ण आये है तो वे स्तुति करने लगे। 
