Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-449


रुक्मी ने शिशुपाल को बारात लेकर आने का आमंत्रण दिया। कामी शिशुपाल बारात सहित आ पहुँचा।
शिशुपाल कामी और अभिमानी था यह भागवत में लिखा है।
वह जब विवाह करने निकला -तब उसने गणेशजी की पूजा नहीं की थी जिससे उसके विवाह में विघ्न आया।
जब साधारण जीव विवाह करने जाता है तो कामाधीन होकर जाता है।
प्रभु तो गोपाल अर्थात गो(इन्द्रियों)को नियंत्रण में रखने वाले है। भगवान जितेन्द्रिय बनकर विवाह करने जाते है।

अंतःपुरमें सुदेव एक नामक ब्राह्मण आता था। रुक्मणी ने उनको कहा कि  महाराज,आप मेरा एक काम करोगे?
मै श्रीकृष्णसे विवाह करना चाहती हूँ। सात श्लोकों में लिखा हुआ मेरा यह पत्र आप श्रीकृष्ण तक पहुँचा दो।

एकनाथ महाराज ने रुक्मणी-विवाह पर भाष्य लिखा है।
वे कहते है कि रुक्मणी -श्रीकृष्ण का विवाह शुद्ध जीव और ईश्वर का विवाह है।
भागवत कथाके अंतिम दिन में यह विवाहकी कथा आती है।

जिसे (जिस परीक्षित को) तक्षक नागके दंशसे मरना है,क्या वह लौकिक विवाहकी बातें  सुनेगा?
पर,यहाँ तो योगी परमहंस शुकदेवजी यह कथा कह रहे है। तो इसका तात्पर्य है-
भाषा विवाहकी है पर तात्पर्य तो जीवके ईश्वरसे मिलनका है।

रुक्मणी ने श्रीकृष्ण को पत्र में लिखा है -मुझे कामी पुरुष के साथ विवाह नहीं करना। मुझे सांसारिक सुखोपभोगकी इच्छा नहीं है। मै निरपेक्ष हूँ,मै निष्काम हूँ। मुझे किसी राजा की रानी होना अच्छा नहीं लगता।
आप निष्काम और निर्विकार हो। मै आप से विवाह करना चाहती हूँ।

निष्काम श्रीकृष्णका निर्विकार रुक्मणी के साथ यह मिलन है।
अलौकिक सिद्धान्त को समझाने के लिए लौकिक शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
व्यासजी की आदत है कि थोड़ा भाव प्रकट करना और थोड़ा गुप्त रखना।
वे सोचते है कि मनुष्य को बुद्धि दी है तो थोड़ा उसका उपयोग करे।
भागवतके श्लोकोंका गहराईसे सोचनेवालोंने यह तय किया है कि- यह काम-प्रधान विवाह नहीं है।

जो व्यक्ति ईश्वर के साथ विवाह करना चाहता है,उसे उसके रिश्तेदार बहुत सताते है।
रुक्मी भी अपनी बहन का विवाह भगवान से होने के विरुद्ध था
किन्तु यदि जीव सद्गुरुकी शरण ले तो बेड़ा पार हो जाता है। रुक्मणीने भी सुदेवकी सहायता ली थी।

शुकदेवजी यह कथा कह रहे है।
परीक्षितजी की इस अलौकिक विवाह कथामें तन्मयता ही बताती है कि यह विवाह साधारण मनुष्य का नहीं है। रुक्मणी-श्रीकृष्ण का विवाह जीव और ईश्वर का मिलन  है जो सुदेव से सद्गुरु की कृपा से हुआ है।
रुक्मणी भगवानकी आद्यशक्ति है। सन्त ही ब्रह्म सम्बन्ध करा सकता  है।
किसी  सुयोग्य सद्गुरु की मध्यस्थताके बिना जीव ईश्वर से मिल नहीं पाता।

रुक्मणी का पात्र लेकर सुदेव द्वारिका आया। श्रीकृष्ण ने उनका स्वागत किया और आनेका प्रयोजन पूछा।

सुदेव ने भगवान को रुक्मणी का पत्र दिया और कहा -कन्या सुपात्र है। वह सुन्दर तो है पर सद्गुणी,चतुर और सुशिल भी है। इसके साथ यदि आपका विवाह होगा तो जीवन सुख-संतोष से बीतेगा।

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