Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-452


गोकुल में नन्द-यशोदा ने -कन्हैया के आगमन की आशा नहीं छोड़ी है। और कन्हैया का पत्र आया।
लाला के विवाह की बात सुनकर सब बहुत खुश हुए है। नंदबाबा की आनंद तो हुआ किन्तु सोचने लगे कि वह तो यहाँ आता नहीं है और ऊपर से हमे वहाँ बुला रहा है। मै द्वारिका नहीं जाऊँगा।
उसके विवाहके दिन मै यहाँ ब्रह्मभोजन  करा दूँगा। उन्होंने पत्र का जवाब नहीं दिया।

विवाह का समय नजदीक आया पर गोकुल से कोई समाचार नहीं आये इसलिए श्रीकृष्ण समझ गए।
वे खुद बलराम के साथ गोकुल आये। गोकुल में प्रवेश करते ही मुगट उतारकर मोरपींछ पहना।
गले में गुंजे की माला पहनी और यशोदा माँ के आँगन में आकर खड़े है। माँ को प्रणाम किया।
माँ को देखते ही श्रीकृष्ण के आँखों में और लाला को देखकर माँ की आँखों में आँसू आये है।
माँ ने श्रीकृष्ण को गले लगाया है। दोनों में कोई भी कुछ बोलता नहीं है।

फिर श्रीकृष्ण बोले-माँ,मुझे आनेमें विलम्ब हुआ। मुझे क्षमा करो। यहाँ से जाने के बाद ऐसा फँस गया कि समय ही नहीं मिला। माँ,मै तुझे लेने आया हूँ। तू नहीं आयेगी तो लाला कुँवारा रहेगा। तू मेरे साथ चल।
हरिकृष्ण-बलराम को साथ बिठाकर माँ ने दोनों की नज़र उतारी है। गोकुल में बड़ा उत्सव हुआ है।

अंत में नन्द-यशोदा,गोप-गोपियों के साथ द्वारका पधारे है। रुक्मणी के पिता भीष्मक भी वहाँ पधारे है। उन्होंने माधोपुर में मुकाम किया है। यहाँ श्रीकृष-रुक्मणी का विवाह हुआ है। दुर्वासा के शाप के कारण कृष्ण रुक्मणी के साथ द्वारिका में नहीं रह सकते इसलिए वे माधोपुर में बिराजे है।

द्वारिका के पास गोपी तालाब है। यहाँ गोपियों ने मुकाम किया है।
श्रीकृष्ण(नारायण)और रुक्मणी(महालक्ष्मी)की जोड़ी के दर्शन करते हुए गोपियों को आनंद हुआ है।
अति आनंद में श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए गोपियों ने वहाँ देहोत्सर्ग कर दिया।
गोपियों के श्रीअंग की मिटटी से ही गोपी चन्दन बना। गोपी चन्दनकी महिमा न्यारी है।
वहाँ महाप्रभुजी की बैठक है। वहाँ उन्होंने भागवत-पाठ किया है।

रुक्मणी के यहाँ प्रध्युमनका प्राकटय हुआ। उसने शंबरासुर का वध किया।

श्रीकृष्ण का दूसरा विवाह सत्यभामा के साथ,तीसरा जाम्बवती,चोथा यमुनाजी,पांचवा मित्रवृंदा,छठ्ठा लक्ष्मणजी,
सातवाँ नाग्नजिती,और आँठवा भद्रा के साथ हुआ है। इस तरह आठ विवाह हुए है। भगवान की आठ पटरानियाँ थी।

थोड़ा सोचोगे तो समझोगे- अष्टधा प्रकृति ही आठ पटरानियाँ है। ईश्वर इन सभी प्रकृतियों के स्वामी है।
ये प्रकृतियाँ परमात्मा की सेवा करती है। प्रकृति ईश्वर के आधीन है।
जब जीव प्रकृति का आधीन बनता है तब वह बंधन में आता है।
प्रकृति अर्थात स्वभाव। तुम स्वभाव के अधीन होने बदले स्वभाव को ही आधीन कर लो।

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