Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-454


श्रीकृष्ण के सेवा करते एक बार रुक्मणी को अभिमान आया कि सर्व रानियोंमें वे श्रेष्ठ है,सुन्दर है,
अतः श्रीकृष्ण उसी में  आसक्त है। प्रभु को पता चला तो उन्होंने लीला की।
उन्होंने उसके अभिमान को नष्ट करना चाहा।

उन्होंने रुक्मणी से कहा -देवी तुम सुन्दर हो,पर तुम्हारे सुन्दरता की कदर तो कोई कामी राजा-महाराजा ही कर सकता है,मै तो वृंदावन का गोवाल हूँ।आप तो गोरी हो,राजकन्या हो और मै तो काला गोपाल।
यह कैसी जोड़ी? आप ने मेरे साथ विवाह क्यों किया? मेरे घर में तुम्हे सुख नहीं मिलेगा।
मुझे कोई सुख की अपेक्षा नहीं है। मै तो निरपेक्ष और उदासीन हूँ। मुझे नारी के सौन्दर्य या सुवर्ण की द्वारिका से  लगाव नहीं है। मुझे तो एकान्त प्रिय है। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है।
मुझे छोड़कर कोई सम्राट से विवाह करके सुख प्राप्त कर लो।

यह सुनकर रुक्मणी घबरा गई। “नाथ,मेरा त्याग मत करो”यह कहते उन्हें मूर्छा आ गई।
प्रभु ने सोचा कि अब दवाई की असर हुई है। चतुर्भुज नारायण ने दोनों हाथों से रुक्मणी को उठाकर बिस्तर में लिटाया। एक हाथ से पंखे से हवा डालते है।
श्रीकृष्ण को सभी तरह का नाटक करना आता है।
रुक्मणी से कहा- देवी,मै तो मज़ाक कर रहा था। आप तो मुझे प्राणों से भी प्यारी है।

रुक्मणी को पता चल गया कि  मेरा अभिमान दूर करने के लिए प्रभु ने यह लीला की है।
रुक्मणी को जब अभिमान था तब प्रभु ने कहा कि मै तुम्हारे लायक नहीं हूँ।
पर अब रुक्मणी कहती है कि मै  आपके लायक नहीं हूँ। मै तुम्हारी रानी नहीं पर दासी हूँ,मेरा त्याग मत करो।
जीव  जब हर प्रकारसे नम्र होकर प्रभु के शरण में आता है,तब प्रभु उसे अपना लेते है।

इस अध्याय का भाव दिव्य है।  स्त्री या पुरुष बाधक नहीं है पर उनमे रही आसक्ति बाधक है।
साधारण मानव भय के बिना पाप नहीं छोड़ता,इसलिए पुराणों में -नरकका भय बताया  है।
जीव में जब अभिमान आता है और अपने को ही श्रेष्ठ मानता है तब प्रभु मानव जीवनमें भय उत्पन्न करते है।
और जब जीव अभिमान छोड़ता है तब प्रभु उसे महान बनाते है।
अनेकबार कथा में आता है कि भगवान की हार और भक्त की जीत हुई है।

जब,राजा परीक्षित ने उषा और अनिरुद्ध के विवाह की बात सुनने की इच्छा शुकदेवजी के समक्ष प्रकट की।
तब,शुकदेवजी वर्णन करते है -
महान शिव-भक्त राजा बाणासुरकी उषा नाम की एक सुन्दर पुत्री थी।
उषाको  स्वप्न में अनिरुद्ध के दर्शन हुए और उसने स्वप्न में विवाह भी कर लिया। उषा की सखी थी चित्रलेखा।
उसने उषा से कहा- तू चिंता मत कर। हम उस पुरुष को कही से भी ले आयेंगे।
चित्रलेखा ने कई पुरुषो के चित्र बताये किन्तु -उनमे कोई उसका प्रेमी नहीं निकला,
किन्तु जान चित्रलेखा ने अनिरुद्ध का चित्र बताया तो उषा लज्जा गई। तब चित्रलेखा समाज गई,
और अनिरुद्ध का हरण करने द्वारिका आई है,पर यहाँ तो सुदर्शन चक्र चौकी  कर रहा था।

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