Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-455


चित्रलेखा सोचने लगी की अब क्या किया जाये ? इतनेमें नारदजी वहाँ आ पहुँचे।
चित्रलेखा ने कहा-महाराज,आप तो साधु हो। आप मेरी मदद करो। आप सुदर्शन से बाते करने में लगे रहो।  
मै चोरी करने जा रही हूँ।
नारदजी ने कहा -तू किसकी चोरी करने जा रही है?
चित्रलेखा- मै अनिरुद्ध की चोरी करने जा रही हूँ।

अनिरुद्ध मन के स्वामी है। चित्रलेखा-चित्र-विचित्र संकल्प करने वाली बुद्धि। अनिरुद्ध मन का स्वरुप है। बुद्धि-चित्रलेखा मन- अनिरुद्ध को हरने जा रही है। किन्तु उसे सफलता तभी मिलती है,
जब नारद अर्थात ब्रह्मचर्य से सहायता मिले। बुद्धि मन से परे है। यदि ब्रह्मचर्य का साथ हो तो वह मन को नियंत्रित कर सकती है। यदि ब्रह्मचर्य- संयम का पालन करोगे तो मन वश में हो पायेगा।

नारदजी ने सुदर्शन से बातें करनी चाही तो उसने कहा कि उसे समय नहीं है,उसे सारे नगर का पेहरा भरना है। नारदजी ने कहा,यह तो  ठीक  है किन्तु तुझे सत्संग भी करना चाहिए। तू कैसे रक्षा करने वाला है ?
रक्षा करने वाला तो  श्रीकृष्ण है। तू अज्ञानी है। सत्संग से ही तेरा अज्ञान मिट सकता है।

इस प्रकार नारदजी ने सुदर्शन को बातों में उलझाया तो उधर चित्रलेखा ने अवसर पाकर अनिरुद्ध के आवासमें प्रवेश किया। अपनी योगविधा के बल से वह अनिरुद्ध को पलंग सहित उड़ा ले चली किन्तु उसकी एक पुष्प माला नीचे गिरी जो सीधे सुदर्शन पर जा पड़ी। सुदर्शन ने ऊपर देखा तो विमान जा रहा था।
उसने नारदजी से पूछा,अरे यह क्या? कही महल में चोरी तो नहीं हुई?

प्रातःकाल में जब अनिरुद्ध दिखाई नहीं दिया तो श्रीकृष्ण ने सुदर्शन को बुलाकर पूछा के रात को क्या कर रहा था? सुदर्शन ने कहा- नारदजी के साथ सत्संग कर रहा था।
भगवान् ने कहा -तेरा काम चौकी करने का था या सत्संग करने का?

चित्रलेखा अनिरुद्ध को अंतःपर में लेकर आती है।
बाणासुर ने जब यह बात जानी तो उसने अनिरुद्ध को कारागृह में बंद कर दिया।
और श्रीकृष्ण ने जब सारी बात जानी,की अनिरुध्ध कारागृहमें बंध है, तो वे सेना लेकर शोणितपुर आ पहुँचे।
बाणासुर शिवजी का सेवक था  सो श्रीकृष्ण ने उसका वध तो नहीं किया किन्तु
उसे सहस्त्रबाहु के स्थान पर चतुर्भुज बना दिया। उषा-अनिरुद्ध का विवाह हो गया।

इसके बाद  नृग राजा के उद्धार की कथा है। नृग राजा ने सत्कर्म तो किये थे किन्तु सकाम किये थे सो उनके पापो का नाश नहीं हो पाया। ब्राह्मण को दान की गई गाय का उसने फिर दान किया सो उसे गिरगिट का अवतार लेना पड़ा। प्रभु ने उसका उद्धार किया।
फिर बलराम ने वन में द्विविद वानर,पौण्डक तथा काशिराज का वध किया उसकी कथा है।
शुकदेवजी ने दुर्योधन की कन्या लक्ष्मण का शांब से विवाह का प्रसंग भी कह सुनाया।

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