राजसूय यज्ञ वही कर सकता है जिसने जगत के सर्व राजाओं को हराया हो। अलग-अलग दिशाओं में योद्धाओं को दिग्विजय करने भेजा गया है। यज्ञ के बहाने अनेक राजाओं को हराया है।
बस एक जरासंघ बाकी है। जरासंघ महा शिवभक्त है। उसे कैसे जीता जाय?
कृष्णने युक्ति की। वे स्वयं,अर्जुन और भीम के साथ ब्राह्मण का वेश धारण करके जरासंघ के पास गए।
जरासंघ ब्राह्मणोंको दान कराए बिना स्वयं भोजन नहीं करता था। सो उन्होंने इन ब्राह्मणोंसे दान मांगनेको कहा। श्रीकृष्ण ने भीमको बताते हुए कहा कि मेरे इस शिष्य से द्वन्दयुद्ध करो।
लड़ते-लड़ते सत्ताईस दिन हो गए किन्तु जरासंघ मरता ही नहीं था। भीम श्रीकृष्ण से कहने लगा -आप दोनों तो खा-पीकर मौज मना रहे है और इधर लड़ते-लड़ते मेरा शरीर चूर-चूर हो रहा है।
श्रीकृष्ण कहते है कि-जरासंघ मर नहीं पाता क्योंकि लड़ते समय तू मेरी ओर दृष्टि नहीं रखता।
तू लड़ते समय मेरी ओर देखना और मै जो युक्ति बताऊ वैसा करना तो वह मर जाएगा।
दूसरे दिन युद्ध हुआ। श्रीकृष्ण ने वृक्ष की एक शाखा चीर कर भीम को सुचना दी कि तू इस तरह उसे चीर दे।
भीम ने जरासंघ का एक पाँव दबाया और दूसरा पाँव खींचकर चीर दिया। जरासंघ मर गया।
इस कथा का रहस्य है-
अर्जुन जीवात्मा है। भीम प्राण है। श्रीकृष्ण परमात्मा है।
जरावस्था (वृद्धावस्था) में मनुष्य के प्राण व्याकुल हो जाते है।
जरावस्था में प्राण यदि श्रीकृष्णकी और दृष्टि करे तो वह भीम की भाँति जरा को मार सकता है।
प्राण यदि परमात्मा के सम्मुख हो पाए,प्रतिश्वास उन्ही का स्मरण करे तो जरासंघ मर सकता है।
जन्म-मृत्यु की पीड़ा ही जरासंघ है।
जरासंघ का वध कराके प्रभु ने सभी राजाओं को मुक्त किया।
पांडवो का राजसू य यज्ञ हुआ ,उसमे प्रश्न हुआ कि सर्व प्रथम पूजा किसकी की जाय।
यज्ञ में बीस हज़ार ऋषि आये थे और सबका मत था कि श्रीकृष्ण की पूजा की जाए।
सभी प्रथम श्रीकृष्ण की पूजा करते है। शिशुपाल से यह सहन नहीं हुआ और वह श्रीकृष्णके लिए
अपशब्द बोलने लगा। भगवान् ने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक उड़ा दिया।
शिशुपाल क्रोध का स्वरुप है। सुदर्शन चक्र ज्ञान का स्वरुप है। क्रोध को शांत करने का उपाय ज्ञान है।
उसके बाद-दुर्योधनने कपटसे पांडवो को ध्युतमें हराया। पांडवोने विराट नगरीमें अज्ञातवास किया।
वनवास समाप्त होने पर कौरवो-और पांडवों के युद्धका अवसर आया।
बलराम ने सोचा कि उन्हें भी किसी एक पक्ष में रहकर लड़ना पड़ेगा। सो वे तीर्थ यात्रा करने निकल पड़े।