भागवत की कथा करते हुए शुकदेवजी दो बार समाधिस्थ हो गए थे।
पहली बार जब श्रीकृष्ण ने ब्रह्माको अपनी मायाका दर्शन कराया था,और दूसरी बार सुदामा चरित्र करते समय। उस समय अन्य ऋषियों ने वेदमंत्रोच्चार से उनको सचेत किया था।
शुकदेवजी वर्णन करते है - सुदामा भगवान के परम मित्र है। उनका निवास पोरबंदर में है।
सुदामा महाज्ञानी,निष्किंचन और पवित्र ब्राह्मण है। वे सारा दिन प्रभु सेवा में बिताते थे
और अयाचक व्रत का पालन करते थे। (किसी के पास कुछ मांगना नहीं-ऐसा व्रत)
ज्ञान का फल धन या प्रतिष्ठा नहीं,परमात्मा से मिलन है। सुदामा अपनी विद्या (ज्ञान)का उपयोग भोग के लिए नहीं
भगवान के लिए करते थे। सुदामा अपने अपरिग्रह व्रत के कारण घर में सूर्योदयके बाद जो आये उसे सूर्यास्त तक उसका उपयोग कर लेते थे। दूसरे दिन के लिए कुछ नहीं रखते थे। घर में दरिद्रता थी।
सुदामा की पत्नी का नाम सुशीला था। सुशीला सुशील है। उसके पास पहनने के लिए एक ही वस्त्र है।
स्नान कर शरीर पर ही साड़ी सुखाती है। वह महान पतिव्रता है।
सुशीला को कई दिनों तक भूख रहना पड़ता था,फिर भी वह क्लेश नहीं करती।
वह कभी सुदामा से ऐसा नहीं कहती थी कि विद्वान होकर भी कमाते नहीं हो।
पति-पत्नी साथ रहकर कृष्ण-कीर्तन,प्रभुसेवा करते रहे तो वैसा गृहस्थाश्रम सन्यास आश्रम से भी श्रेष्ठ है।
पति-पत्नी अकेले थे तब तक घर में शान्ति थी। अब प्रभु की लीला से घर में दो-तीन बच्चे हुए।
सुदामा के घर में कई बार बच्चों को खिलाने के लिए घर में कुछ नहीं होता। बच्चे माँ के पीछे पड़े है।
सुशीला को दुःख होता है। उनसे बच्चों की दुर्दशा नहीं देखी गई।
एक दिन व्याकुलता से वह अपने पति से कहने लगी-आपसे एक प्रार्थना करनी है।
आप कथा में कहते है कि कन्हैया को अपने मित्रो से बहुत प्रेम है। वह मित्रों के लिए चोरी भी करता था।
सुदामा- हाँ,यह बात सच है। वह अपने मित्रों को खिलाने के बाद ही खाता था।
सुशीला- आप तो कन्हैया के मित्र हो। आप एक बार उन्हें मिलने जाओ।
आप उनसे मिलो तो अपना यह दुःख दूर किया जाए।
सुदामा- मेरा मित्र लक्ष्मीनारायण है। मै दरिद्रनारायण हूँ। मुझे जाने में संकोच होता है। सो वहाँ जाऊँगा तो लोग
कहेंगे कि यह ब्राह्मण भीख मांगने आया है। मेरा नियम है की परमात्मासे कुछ भी मांगने नहीं जाऊँगा।
सुशीला-मै तुम्हे मांगने के लिए नहीं भेज रही हूँ। वे तो हज़ार आँख वाले है।
अपने आप ही सब कुछ समझ जायेंगे। केवल उनके दर्शन तो कर आओ।