Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-463


लौकिक दृष्टि से तो दो मुठ्ठी भर तंदुल ही थे किन्तु सुदामा का तो वह  सर्वस्व था।
सुदामा प्रारब्ध कर्मानुसार दरिद्र थे। विधाता ने उनके भाल पर लिखा था- “श्रीक्षयः” (यह जीव दरिद्र होगा)
प्रभु जब सुदामा के भाल पर तिलक करने लगे तो तो उन्होंने विधाता का लेख पढ़ा औए उसे उल्टा भी दिया -
”यक्ष श्री”। (कुबेर के घर जितनी संपत्ति) जो संपत्ति कुबेर के पास भी नहीं है वह मैं  सुदामा को दूँगा।

भगवान ने सुदामा के प्रारब्ध कर्मो को क्षीण करने के हेतु तंदुल का भक्षण किया।
क्योकि वे तो परमात्मा है न? श्रीकृष्ण ने सारे विश्व को अन्नदान करने का पुण्य सुदामा को दिया।

श्रीकृष्ण सुदामा से कहते है कि गोकुल में मेरी माँ भी इसीप्रकार मुझे तंदुल खिलाती थी।
यशोदा के  स्मरण से भगवान की आँखों में आँसू आ गए। सुदामा के तंदुल  प्रेमरस से भीगे हुए थे।
एक मुठ्ठी तंदुल के बदले में प्रभु ने समग्र द्वारिका का ऐश्वर्य सुदामा के घर भेज दिया।

सुदामाने अपने दारिद्रय की बात भगवानसे न बताई सो भगवान् ने भी ऐश्वर्यदानकी बात सुदामा को न बताई।
अगले दिन सुदामा अपने गाँव को लौटने की तैयारी करने लगे।
उन्होंने सोचा कि कृष्ण दो-चार दिन ठहर जाने का आग्रह करेंगे। किन्तु भगवान् ने ऐसा नहीं किया।
कारण उधर सुशीला सारा वैभव पाकर व्रत लेकर बैठी थी कि पति के मुख दर्शन किया बिना भोजन नहीं करेगी। भगवान ने सोचा कि यदि सुदामा को जाने न दूँगा तो भाभी को उतने दिन भूखे रहना पड़ेगा।
सो उन्होंने सुदामा को आग्रह नहीं किया।

निरपेक्ष सुदामा अपनी पुरानी धोती पहन कर जाने के लिए तैयार हो गए। जाते-जाते भी उन्होंने कुछ नहीं माँगा। श्रीकृष्ण द्वार तक उन्हें छोड़ने गए और कहने लगे,अब की बार भाभी को भी साथ ले आना।
उनको मेरी याद कहना और मेरे वंदन कहना।

सारा  विश्व श्रीकृष्ण को वंदन करता है और वे एक दरिद्र ब्राह्मण की पत्नी को वंदन करते है।
जैसे तंदुल मेरी माँ मुझे खिलाती थी वैसे ही तंदुल भाभी ने मेरे लिए भेजे है। सुदामा को गले लगाकर विदाई दी।
दोनोंकी आँखों में आँसू झलक आये।  

सुदामा गाँव में आकर अपनी झोंपड़ी ढूँढने लगे। वहाँ झोंपड़ी की जगह बड़ा महल खड़ा था।
सुदामा को आश्चर्य हुआ कि यह क्या? उधर सुदामा के आगमन का समाचार सुशील को मिले तो -
वह दौड़ती हुई बाहर आई और पति का स्वागत करती हुई कहने लगी,आपके मित्र की कृपा से यह सब हुआ है।

द्वारकानाथ जैसा कोई उदार नहीं है,इतनी संपत्ति दी पर फिर भी एक शब्द नहीं बोले है।
और सुदामा जैसा कोई ब्राह्मण नहीं हुआ है,अति निर्धनता होने पर भी कुछ माँगा नहीं है। वे प्रार्थना करने लगे।
"मुझे धन की अपेक्षा नहीं है। मै तो यह चाहता हूँ कि जन्म-जन्मांतर मुझे श्रीकृष्ण की भक्तिका
अवसर मिलता रहे,उनके चरणों में मुझे स्थान मिले।"
सुदामा गरीब थे तब भी भक्ति करते थे और अब अति संपत्ति में भी अति भक्ति करते है।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE