कुरुक्षेत्र आए हुए माता-पिता से श्रीकृष्ण जब पूछा -आपके मन में कोई इच्छा है? यदि हो तो मै पूर्ण करू।
देवकी ने कहा -मुझे कहते हुए शर्म आती है पर मन में एक सूक्ष्म वासना रह गई है।
मेरे बालकों को जो कंस ने मार डाले थे उन्हें देखने की इच्छा है।
यही प्रश्न जब श्रीकृष्ण ने यशोदाजी को पूछा था तब यशोदाजी ने कहा था -मेरी एक ही इच्छा है ,मेरा कन्हैया
चौबीस घंटे मेरे पास रहे,मेरी नज़र से दूर न हो और मै हमेशा उसके दर्शन करती रहू।
श्रीकृष्ण आज सोचते है -कहाँ देवकी और कहाँ यशोदा? वासना(इच्छा)की कैसी बलिहारी है।
जन्म देने वाली माता में वासना रह गई है।
प्रभु ने पाताल में से उनके छ भाइयों को निकालकर माँ को उनके दर्शन कराये।
अंत में देवकीजी ने कहा -तेरे पिता ने जो माँगा वही मैं मांगती हूँ कि मेरी मृत्यु सुधरे।
शरीर त्याग के समय बड़ी वेदना होती है। सो मन को ऐसी शिक्षा दो कि मृत्यु के समय,उस वेदना के बीच भी भगवान याद आये। मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने वाले व्यक्ति को धन्य है।
उसी व्यक्ति की मृत्यु उजागर होती है,जोअपना प्रतिक्षण सुधारता है।
प्रभु ने वासुदेव-देवकी को दिव्य तत्वज्ञान समझाया।
दशम स्कन्ध के अंत में सुभद्राहरण का वर्णन है।
भद्र अर्थात कल्याण करने वाली ब्रह्म विद्या। अद्वैतदर्शी ब्रह्मविद्या ही सुभद्रा है।
जिसके घर में सुभद्रा हो,उसका जीवन कल्याणमय,सुखी होता है।
अर्जुन की भाँति सन्यास लेकर तप करने वाले को ही सुभद्रा की प्राप्ति होती है।
अर्जुन ने त्रिदंडी सन्यास लेकर चार मॉस तक कठिन तपश्चर्या की थी -
और प्रतिदिन अठारह घंटे ओमकार का जप किया था -तभी प्रभु ने उसे सुभद्रा-ब्रह्म विद्या दी।
परीक्षित राजा ने प्रश्न किया -शब्द रूप वेद,निराकार वेद का प्रतिपादन किस प्रकार करता है?
शुकदेवजी ने वेदस्तुति की कथा सुनायी।
सृष्टि के आरम्भ में शेष शय्याशायी नारायण की वेदों ने स्तुति की।
परमात्माको वेदों ने मंगलगान करके जगाया।
परमात्मा की जयकार करके वेद माया बंधन से मुक्ति की प्रार्थना करते है।
अनादिकाल से जीव और माया का संग्राम चल रहा है।
माया उसे जगत के विषयों में फँसाय रखती है सो वेद परमात्मा को स्तुति करते है कि-
माया के बंधनों को काट दीजिये।