Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-474


(८) होला कबूतर का प्रसंग- से मैंने सिख है कि किसी भी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अतिशय आसक्ति नहीं
    होनी  चाहिए। किसी की मृत्यु पर विलाप मत करो। रोने वाला स्वयं भी एक दिन जानेवाला है।
    अपने हित को साधने का प्रयत्न करो।
(९) अजगर- की भाँति प्रारब्ध कर्मानुसार जो कुछ मिले,उससे संतुष्ट रहो।
(१०) समुद्र - वर्षा ऋतु में बहुत सा जल मिलने पर भी छलकता नहीं है और ग्रीष्म ऋतु में जल न मिलने पर
      सूखा नहीं हो जाता। सो सुख-दुःख में हमे भी समुद्र की भाँति ही रहना चाहिए।
(११) पतंगा-वह अग्नि से मोहित होकर उसके पास जाता है और जलकर मर जाता है। मनुष्य भी सौन्दर्यमे
      फंसकर अपना सर्वनाश मोल लेता है। पतंगे की भाँति सौन्दर्य के पीछे पागल होने से
      अपना अहित होता है।   जगत के विषय बहार से सुंदर  है,भीतर से नहीं,सुंदरता तो कल्पना मात्र है।
       एकमात्र श्रीकृष्ण ही सुन्दर है। उन्ही से प्रेम करो।
(१२) भ्रमर- की भाँति सार ग्रहण करो किन्तु आसक्त न बनो। भ्रमर ने कमल में आसक्त होकर अपने प्राणों से
       हाथ धो लिए। वह लकड़ी तो छेद सकता है किन्तु कमल की कोमल पंखुड़ी को नहीं क्योंकि
        उसे कमल के प्रति आसक्ति है।

यह संसार भी कमल जैसा है जो अपने विषय गंध में जीव भ्रमर को फँसा देता है। भ्रमर कमल के पंखुड़ियों के खुलने की सोचता है किन्तु हाथी ने उसके पैरो टेल कुचल कर ,उसके सारे सपने उजाड़ दिए।
मनुष्य भी सांसारिक विषयों में फँसकर अपने को  लूटा देता है।
हाथी-रूपी काल कुचलकर नष्ट कर दे,उससे पहले ही सर्वस्व का मोह छोड़कर प्रभु से मन को जोड़ लेने वाला जीव काल को हरा सकता है। जिसप्रकार भ्रमर में लकड़ी कुरेदने की शक्ति होती है,उसी प्रकार मनुष्य भी शक्तिशाली है। मनुष्य चाहे तो नारायण बन सकता है किन्तु उसे पहले आसक्ति का त्याग करना पड़ेगा।
मधुकृत के दो अर्थ है-भ्रमर और मधुमक्षिका। जो मधुमक्षिका से सीखो तो कोई भी चीज का अतिसंग्रह न करो। मधुमखी मधु का संग्रह करती है और लोग उसे मारकर मधु छीन लेते है।

(१३) हाथी- स्पर्शसुख की लालसा के कारण हाथी जान गँवाता है। लोग बड़ा-सा गढ्ढा खोदकर ऊपर
       घास-पात  रखकर नकली हथिनी रख देते है। हाथी उसे असली हथिनी मानकर स्पर्शसुख की इच्छा से
         वहाँ जाता है और तुरन्त गढ्ढे में फँस जाता है।
        शास्त्रों में लिखा है कि साधक पुरुष लकड़े की बनाई स्त्री की पुतली  का पाँव से भी  संग न करे।
(१४) पारधी-(शिकारी) मधुमखी द्वारा एकत्रित मधु शिकारी छीन ले जाता है। उसी तरह योगी भी
       बिना उद्यम किए बिना भोग पा सकता है। धन का संग्रह करने के बदले दान करो।
(१५) हिरण -जिस प्रकार स्पर्शसुख की लालसा से हाथी का नाश होता है उसीप्रकार संगीत-श्रवण की
       लालसा से हिरन का नाश होता है। सो योगी को गीत,संगीत,नृत्य आदि विषयों का त्याग करना चाहिए।
(१६) मछली- रससुख की, जिव्ह्वा की लालसा मछली को मारती है। कांटोसे लगाया गया मांस मछली खाने
        जाती है और वह मर जाती है। उसी तरह मनुष्य को भी यह जीभ बड़ी परेशान करती है।

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