Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-475


इसी तरह संक्षिप्त में पांच विषयों की कथा कही है ऐसा भी कह सकते है।
-आँख का विषय है रूप- रूप(अग्नि)के सुख की इच्छा से पतंगा का नाश होता है।
- नाक का विषय है -गंध,- (कमल की सुगंध)से भ्रमर का नाश होता है।
- चमड़ी का विषय है -स्पर्श- स्पर्श की इच्छा से हाथी का नाश होता है।
- कान का विषय है -श्रवण- श्रवण की इच्छा से हिरण का नाश होता है।
- जीभ का विषय है-रस - रस की इच्छा से मछली का नाश होता है।

इसीप्रकार ऊपर के प्राणी मात्र एक ही विषय को भुगतने जाते है और उनका नाश होता है,
तो मनुष्य मनुष्य में तो पाँच विषय भुगतने की शक्ति है। अगर वह पांचो विषय को भुगते तो क्या हाल होगा?

(१७) वेश्या- कामसुख में शान्ति नहीं है। कामसुख भुगतने की इच्छा सबसे बड़ा दुःख है।
पिंगला नाम की एक वेश्या धनवान ग्राहक की प्रतीक्षा में सारी रात जागा करती थी। एक बार उसने सोचा कि कामी पुरुष के लिए जागने की अपेक्षा प्रभु के लिए जागकर उनको ही क्यों न पा लू और उसने विषयों का त्याग किया। उसने कामी पुरुष की प्रतीक्षा में जागते रहना छोड़ दिया और रात्रि को शान्ति से सो गई।
इस जगत में आशा परम दुःख है और किसी की आशा न रखनी वह परम सुख है। सो सुख की आशा न करो।

आशा की जंजीर मनुष्य को किस हद तक जकड रखती है,उसका वर्णन शंकराचार्यजी करते है-
शरीर गला जा रहा है,केश श्वेत हो गए है,दाँत गिर चुके है,दुर्बलता के कारण लकड़ी के सहारे चलना पड़ता है,फिर भी बूढ़ा आशा का पिंड छोड़ता नहीं है। ऐसे बूढ़े की भाँति आचरण करने के बदले भगवान का भजन करो।

(१८) कुररी- पक्षी की भाँति संग्रह करने के बदले त्याग करते रहो।
(१९) बालक- से भोलापन,निर्दोषता ग्रहण करो।
(२०) कुमारी- कन्या के पास से एकान्त का बोध लिया।
एक कुँवारी कन्या की मंगनी के लिए कुछ महेमान आये। घर में चावल तैयार नहीं थे तो वह मूसल लेकर बैठ गई किन्तु उसने सभी चूड़ियाँ उतार दी क्योंकि यदि चूड़ियाँ रहने देती तो मूसल के पीसने से आवाज हो और अगर मेहमान सुने तो उन्हें पता चल जाए कि  घर में चावल नहीं है,और उनकी गरीबी का पता लग जाए।
इसी प्रकार बस्ती में रहने से कलह-क्लेश होने की सम्भावना है सो साधु को एकांतवास करना चाहिए।

(२१) लुहार- बाण बनानेवाला लुहारसे भी मैंने तन्मयता का बोध लिया। वह अपने काम में इतना मस्त था कि रास्ते में धूमधाम से जानेवाली राजा की सवारी गई फिर भी उसे पता नहीं चला। लौकिक कार्य में तन्मयता के बिना सिद्धि प्राप्त नहीं होती। ध्याता,ध्यान और ध्येय जब एकरूप हो जाते है,तभी जीव कृतार्थ होता है।
(२२) सर्प- की भाँति अकेले रहना और घूमते रहना ऐसा बोध लिया।
(२३) मकड़ी- ईश्वर मकड़ी की तरह माया से  श्रुष्टि की रचना करता है और उसका संहार करता है ऐसा बोध लिया। मकड़ी अपने मुँह से लार टपकाती है,उससे खेलती भी है और उसे निगल भी जाती है।
(२४) कीटक- भी मेरा गुरु है। भँवरी उसको पकड़कर अपने बिल में कैद कर देती है।
कीटक भंवरी के भय से उसी का चिंतन करता है और अंत में स्वयं भँवरी बन जाता है।
मनुष्य भी ईश्वर का चिंतन करते-करते ईश्वर बन सकता है।
विषयों का चिंतन करने से उसका मन विषयी हो जाता है।

यदुराज ने गुरु दत्तात्रेय को साष्टांग प्रणाम किया।

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