किन्तु सर्वश्रेष्ठ साधन तो मेरी भक्ति ही है। भक्ति सभी पापो को जलाकर भस्म कर देती है।
मुझे प्राप्त करने के लिए अनन्य भक्ति जितनी सामर्थ्य है,
उतनी सामर्थ्य योग,सांख्य,धर्म,वेदाध्ययन,तप,त्याग आदि में नहीं है।
भक्तियोग की महत्ता के बाद प्रभु ने ध्यान योग की विधि बताई।
ध्यान के दो प्रकार है। एक ही अंग के चिंतन को ध्यान कहते है और सर्वांगो के चिंतन को धारणा।
ध्यान करते-करते वह ध्येय से एकरूप हो जाता है।
रोज ईश्वर का ध्यान करोगे तो घर,शरीर,संसार का विस्मरण हो सकेगा।
जो प्रभु में तन्मय हो गया है,उसे देहभान नहीं रहता।
उद्धव,व्यर्थ भाषण भी पाप है,सो सोच-समझ के ही बोलना चाहिए।
भक्ति से सिद्धि प्राप्त होती है किन्तु वे मेरी प्राप्ति में बाधक है सो उनसे दूर ही रहना।
सिद्धि प्रसिद्धि लाती है और प्रसिद्धि प्रमाद। परिणामतः मेरे भजन में विक्षेप होने लगता है।
सो सिद्धियों से दूर ही रहना।
आगे भगवान ने अपनी विभूतियों का वर्णन किया। और चारों आश्रमो के धर्मों को समझाया।
उद्धवजी प्रश्न पूछते है और श्रीकृष्ण जवाब देते है-
शम क्या है?- बुद्धि को परमात्मा में स्थापना करना शम है।
दम क्या है?- इन्द्रियों को वश करना दम है।
दान क्या है?- किसी भी प्राणी का द्रोह न करना वह श्रेष्ठ दान है।
जगत में जो कुछ दिखता है वह परमात्मा की कृपा से है,ऐसा भाव रखकर किसी के साथ द्रोह न करना।
जगत के कोई भी जीव को हलका मत समझो,उसके प्रति कुभाव मत रखो।
प्रत्येक को सद्भाव और समभाव से देखो वह सबसे बड़ा दान है।
तप क्या है?- सभी कामनाओं का त्याग तप है।
शौर्य क्या है?- वासनाओं को जीतना शौर्य है। स्वभाव पर विजय प्राप्त करना शौर्य है।
सत्य क्या है?- ब्रह्म का विचार करना वह सत्य है।
सच्चा धन कौन सा है?- धर्म(स्व-धर्म)मनुष्य का उत्तम धन है।
लाभ क्या है?- परमात्मा की भक्ति मिलनी उत्तम लाभ है।
पंडित कौन?- बंधन और मोक्ष का तत्व जाने वह पंडित है और ग्रंथों में लिखे हुए सिध्धांतो को जीवन में उतारकर भक्तिमय जीवन जीने वाला उत्तम ज्ञानी है।
मूर्ख कौन?- शरीर को जो आत्मा मानता है वह मूर्ख। इन्द्रिय सुख में जो फँसा है वह अज्ञानी मूर्ख।
धनवान कौन?- गुणों से सम्पन्न और संतोषी।
दरिद्र कौन?- जो असंतोषी है- गरीब है। जो मिला है वह कम लगे वह गरीब है।
जोव कौन?- माया के आधीन है वह जीव। संसार के विषयों में फँसा है और इन्द्रियों का गुलाम है।
वीर कौन?- अंदर के शत्रुओं को जो मारे।
स्वर्ग क्या है और नरक क्या है?- अभिमान मरे और सत्वगुण बढे,परोपकार की इच्छा हो,तो समझो कि वह स्वर्ग में है। आलस,निद्रा और भोग में समय बिताये तो समझना कि वह नरक में है।